मानवहृदय के लिए तंगी और तवंगरी दोनों ही भार हैं,
जैसे मानव शरीर के लिए
हिम और अग्नि दोनों ही घातक हैं ।
फ़ाकाकशी और पेटूपन दोनों समान रूप से
मनुष्य के हृदय से ईश्वर को रुखसत कर देते हैं
- थ्योडोर पार्कर

भोजन आधा पेट कर, दुगुना पानी पी = तिगुना श्रम, चौगुनी हँसी, वर्ष सवा सौ जी
सही बात है। आभार।
ReplyDelete